अग्र-भगवात कथा सर्वप्रथम महर्षि वेदव्यास जी के प्रधान शिष्य जैमिनी ऋषि ने परिक्षित के बेटे जन्मेजय को सुनाई थी, क्योकि जन्मेजय उस समय बहुत अधिक तनाव एवं गुस्से में था वह बहुत परेशान था ऐसे अशांत राजा को अग्र-भागवत कथा का श्रवण करने से उनके मन को शांति मिली एवं मुक्ति मिली थी।
यह कथा किन्ही कारणों से इतिहास के पन्नों में लोप से हो गयी थी, परन्तु ईश्वर कृपा से सन 1991 में महर्षि रामगोपाल बेदिल जी को 49 ग्राम के 216 पन्नों के भोजपत्र एक संत से भेंट स्वरुप प्राप्त हुए, जो देखने में लगभग कोरे पन्नों के समान थे, परन्तु उन भोजपत्रों की यह विशेषता थी कि उन पन्नों पर जलाभिषेक किया जाए तो उन पर से अक्षर उभर कर आते है।
14 वर्षो की बहुत बड़ी रिसर्च व कड़ी मेहनत के बाद उन भोजपत्रों के 216 पन्नों से 27 अध्याय 1429 श्लोकों की अग्र-भागवत कथा का हिंदी एवं संस्कृत भाषा में तैयार की गयी, जोकि अब विश्व की 14 भाषाओं में रूपांतरित सेहोकर आपके समक्ष उपलब्ध है।
विश्व में पहली बार सन 2015 में अग्र-भागवत कथा का 5 दिवसीय विशाल आयोजन प्रसिद्ध विद्वान पं विजय शंकर मेहता  जी के मुखारबिंद से अग्र-विभूति स्मारक (अग्रोहा शक्तिपीठ) अग्रोहा (हिसार) किया गया जिसका श्रवण करने हज़ारो की संख्या में अग्र-बंधू अग्रोहा पहुंचे । वर्तमान समय में अनेक विद्वान आचार्या  के मुखारबिंद से अग्र-भागवत कथा का भव्य आयोजन देश के हज़ारो स्थानो पर किया जा रहा है जैसे सूरत, पंचकूला, रायपुर, तिनसुकिया, मेघालय, जगन्नाथपुरी, गोबिन्द देव जी के मन्दिर जयपुर, राउरकेला, दिल्ली, चंडीगढ़, आगरा, नारनोल यमुनानगर, भिवानी, धौलपुर, कोटा, अजमेर, बाड़ी, डबवाली, पुण्डरी, आदि।
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