अग्र-विभूति स्मारक (अग्रोहा शक्तिपीठ) सम्पूर्ण परिचय

अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन द्वारा गठित श्री अग्रसेन फाउंडेशन द्वारा महाराजा अग्रसेन राष्ट्रीय राजमार्ग पर अग्रसेन जी की पवित्र भूमि अग्रोहा में 10 एकड़ जमीन पर अग्र-विभूति स्मारक (अग्रोहा शक्तिपीठ) का निर्माण किया गया है। यहाँ भगवान अग्रसेन एवं माँ माधवी का विशाल मंदिर बनाया गया है जहां पूजा-अर्चना करने के बाद लोगों को मुहमांगी मुरादें मिल रही हैं। परिणाम यह है कि यहां प्रायः अग्र-बंधुओ द्वारा सवामनी प्रसाद एंव 56 भोग भंडारे का आयोजन अपनी मुरादें पूरी होने के उपलक्ष्य में किया जा रहा है। देश के 49 अग्र-वैश्य महापुरूषों, स्वतंत्रता सेनानियों एवं शहीद जवानों की मूर्तियाँ स्थापित कर यहां अग्र-विभूति स्मारक बनाया गया है, जिसका शुभारम्भ हरियाणा के राज्यपाल महामहिम प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी के करकमलों द्वारा किया गया। यहाँ एक विशाल संग्रहालय का निर्माण किया गया है जिसमे अभी तक देश-विदेश के लगभग 500 से अधिक अग्र-वैश्य महापुरूषों के चित्र लगाए गए है जिन्होने अग्रवंश के इतिहास में अपने योगदान से चार-चांद लगाए है।  यहाँ पवित्र अग्र-सरोवर का शुभारम्भ भी महामहिम श्री कप्तान सिंह सोलंकी के करकमलों द्वारा किया गया जिसमें देश के 118 तीर्थों का पवित्र जल समाहित है। मौजूदा समय में यहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में अग्रबंधु अपने पितरों के तर्पण के लिए हवन-पूजन कर रहे है। फाउंडेशन द्वारा अग्रोहा शक्तिपीठ में 54 कमरों की अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त अतिथि भवन (धमर्शाला) सफलतापूर्वक चलाई जा रही है जिससे अग्रोहा आने वाले तीर्थयात्रियों को आवास एवं भोजन की सुविधा प्रदान की जा सके। यात्रियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए 54 कमरों की ही एक और धर्मशाला भी शीघ्र बनाने की योजना हैं।  फाउंडेशन द्वारा शक्तिपीठ में माँ माधवी अन्नक्षेत्र (रसोई) का भी संचालन किया जा रहा है जिसके माध्यम से अग्रोहा शक्तिपीठ आने वाले यात्रियों एवं अग्रोहा मेडिकल कालेज में इलाज कराने वाले गरीबों के परिजनों को निःशुल्क भोजन प्रदान किया जा रहा है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोगों को माँ माधवी अन्नक्षेत्र के माध्यम से भोजन प्राप्त हो रहा है।
अग्रोहा शक्तिपीठ में स्थापित अग्रवाल-वैश्य समाज के गौरव दानवीर भामाशाह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। भामाशाह के सहयोग ने ही महाराणा प्रताप को जहाँ संघर्ष की दिशा दी, वहीं मेवाड़ को भी आत्मसम्मान दिया। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थे, तब भामाशाह ने अपनी सारी जमा पूंजी महाराणा को समर्पित कर दी। तब भामाशाह की दानशीलता के प्रसंग आसपास के इलाकों में बड़े उत्साह के साथ सुने और सुनाए जाते थे। अग्रोहा शक्तिपीठ में स्थापित झांकी, लाला लाजपत राय गुलाम भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के तीन प्रमुख नायकों लाल-पाल-बाल में से एक थे। इस तिकड़ी के मशहूर लाला लाजपत राय न सिर्फ एक सच्चे देशभक्त, हिम्मती स्वतंत्रता सेनानी और एक अच्छे नेता थे बल्कि वे एक अच्छे लेखक, वकील, समाज-सुधारक और आर्य समाजी भी थे। अग्रोहा शक्तिपीठ का भव्य स्वागत द्वार भगवान सूर्य नारायण के सात घोड़ों से युक्त रथ के रूप में बनाया गया है जो महाराजा अग्रसेन राजमार्ग से गुजरने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन चुका है। अग्रोहा शक्तिपीठ में एक विशाल ऑडीटोरियम एवं संग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है जिसमे वहां आने वाले लोगो को महाराजा अग्रसेन के जीवन से जुड़े दस्तावेजों एवं वस्तुओं को देखने तथा अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हो सके।
आने वाले समय में अग्रोहा शक्तिपीठ महाराजा अग्रेसन के जीवन पर शोध करने वाले लोगों के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र बनेगा। अग्रोहा फाउंडेशन की ट्रस्टीशिप सहयोग राशि एक लाख रूपये, सरंक्षक ट्रस्टीशिप सहयोग राशि 11 लाख रूपये एवं बोर्ड आफ ट्रस्टीशिप सहयोग राशि 51 लाख रूपये है। इसके अलावा देश के प्रत्येक अग्रवाल परिवार का सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से एक ईंट का सहयोग लेने 500 रुपए की हुंडी की भी योजना क्रियान्वित की जा रही है। सम्मेलन का प्रयास है कि कम से कम एक करोड़ हुंडी का सहयोग एक करोड़ परिवारों से जुटाया जाए जिससे प्रत्येक अग्रबंधु अग्रोहा शक्तिपीठ से अपने आप को जोड़ सकें। अग्र-चेतना एवं सद्भावना रथ यात्रा सम्मेलन द्वारा पूरे देश में भगवान अग्रसेन के सिद्धांतों एवं आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से पहली आतंकवाद के खिलाफ सद्भावना रथ यात्रा वर्ष 2003 में निकाली गई। पूर्व उपप्रधान मंत्री श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी द्वारा इस रथ यात्रा को झंडी दिखाकर 17 फरवरी 2003 को रवाना किया गया। इस रथ यात्रा ने देश के कोने-कोने में शांति एवं सद्भाव का संदेश देने का काम किया। इस रथ यात्रा को सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका स्वागत विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा किया गया। इस रथ यात्रा के आयोजन के सूत्रधार श्री राधेश्याम गोयल एंव श्री गोपाल शरण गर्ग थे। दूसरी रथ यात्रा पुनः श्री गोपाल शरण गर्ग के नेतृत्व में 5 अप्रैल 2015 से प्रारम्भ हुई जिसने पूर देश मे 18 महीनों तक भ्रमण किया। इस रथयात्रा को अग्रविभूति स्मारक से अग्र-भागवत कथा के भव्य एवं विशाल आयोजन के बाद रवाना किया गया, जिसका पूरे देश में जोरदार स्वागत हुआ। इस रथ यात्रा ने पूरे देश में 1 लाख 61 हजार किलोमीटर की यात्रा की एवं अग्रबंधुओं में भारी उत्साह एवं उल्लास का संचार किया। इस रथ यात्रा के माध्यम से समाज को संदेश दिया गया कि कलयुग का मूल ग्रंथ अग्रभागवत है और इसके माध्यम से भगवान अग्रसेन के आदर्शों को अपना कर ही पूरे विश्व में शांति एवं सद्भावना का वातावरण विकसित किया जा सकता है। हिंसा, आतंक एवं युद्ध से किसी भी समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता इसीलिए भगवान श्री अग्रसेन ने अपने राज्य में रहने वाले प्रत्येक परिवार के लिए मकान एवं रोजगार देने की व्यवस्था सुनिश्चित की थी। भगवान श्री अग्रसेन के दिखाए मार्ग पर चलते हुए आज भी अग्रवाल समाज द्वारा देश के कोने-कोने में विद्यालय, कालेज, हस्पताल, धर्मशाला इत्यादि का संचालन किया जा रहा है जिससे समाज के कमजोर वर्ग के लोग भी लाभन्वित हो रहे है। ऐसे कार्यों से समाज में विद्यमान अमीरी एवं गरीबी की खाई को भरने का काम अग्रबंधुओं द्वारा सफलतापूर्वक किया जा रहा है।

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